बड़ी ही आनन्द भरी बात है की जितना हम सीखते है, अपने विवेक और ज्ञान को नवीन आयाम देते है, हमारा विवेक और ज्ञान उतने ही द्रंड होते जाते है की हम कुछ नही जानते। कभी कभी तो बड़ी परेशानी होती है और मन कहता है की अच्छा होता अगर यह ज्ञान और विवेक न पाया होता, अच्छा होता की में वही विस्वास से भरा मुर्ख ही बना रहता.. अच्छा होता में अपने दो शब्दों के ज्ञान की पोटली को ही ढौता, वो हलकी तो थी और उसने मेरी आत्मा के भारीपन को भी छुपा रखा था क्यों की तब तो मेरा अज्ञानी मन बस बाहर के भार को ही देखता था, उसे कहा फुर्सत थी आत्मा और उसका भारीपन जैसे जटिल और उबाऊ शब्दों को समजने की और यदि समजना भी चाहता तो कहा समाज सकता था। उस मुर्खता में विस्वास तो था..यहाँ तो ज्ञान आता है और विस्बास कमजोर होता जाता है, आत्मा हलकी होती है और मन भारी, मन यही सोच डर रहा है की अभी न जाने और क्या क्या छुपा है, अभी तक अपने को महाज्ञानी समाज कर खुश हो लेता था लो अब वो भी चला गया...
यह अनुभव किसी पहाड़ की जड़ से उसकी चोटी तक जाने की यात्रा जैसा ही है, पहाड़ के आधार पर खड़े होकर देखो तो छोटा सा संसार दिखता है कोई कोस दो कोस..और मन उछाल ले लेकर उत्सव मनाता है की सारा संसार अब मेरी नजरो ने देख लिया, बड़े ही आनंद में डूब जाता है अब तो समाले से भी न समले, भाई संसार देखा है मामूली बात थोडी है और जिव्हा उबले दूध से भी तेज अपने ज्ञानी होने का उफान लेती रहती है..वाह रे मना।
जहा किसी दिन धोके से पहाड़ पर चढ़ गए और गलती से कही चोटी की और यात्रा शुरू कर दी तो सब उबलना उछलना सारे के सारे उफान धीरे धीरे ..और धीरे शांत हो जाते है शायद पहाड़ की चढाई से थक गए है फ़िर आ जायेंगे...पर यह क्या ..आश्चर्य ...सब उत्तेंजना अब शांत हो गई..अरे शांत नही ..मर गई ..अब तो बस यह मूक है और चारो और आंखे फाड़ फाड़ देख रहा है, जिस संसार के संपूर्ण ज्ञान की हुंकार भरता रहा वो तो अब कही दिखाई ही नही दे रहा ..अरे यह क्या ...यहाँ तो कुछ नया ही संसार है..जिसका द्रश्य बड़ा ही विशाल, भव्य, अनोखा और आत्मा को शांत करने वाला...जिस ज्ञान की पोखर को में समुन्द्र समज इतराता रहा वो तो इसमे बूंद के सामान भी नही टिक रहा ...और जिस एक विशाल पहाड़ को में चढ़ कर यहाँ आया हु वैसे जाने कितने पहाड़ यहाँ से दिख रहे है...अब ज्ञान हो रहा है की ज्ञान यह भी नही है ....
ज्ञान भया अब और जाना, मुजसा मुरख कौन !
Tuesday, August 12, 2008
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1 comment:
lagta hai bahut gyanni logon ke beech mein ho :)
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