Wednesday, November 25, 2009

सफलता का मूल्य सिर्फ़ परिश्रम ....?

बड़ी ही सादारण और प्रसिद्ध बात है की "बिना मूल्य कुछ नही मिलता। या इस जग में हर चाह का मूल्य है, चाए वो भोतिक हो या विचारिक । मीठा स्वाद बिना चीनी का मूल्य दिए नही मिलता, प्राप्त होने वाला हर पल अपना मूल्य पहले लेकर ही हमारे पास आता है, पल जितना महत्वपूर्ण मूल्य भी उतना ही अधिक। जीवन का सबसे आनंद्नीय क्षण (सफलता) अपने मूल्यों की पूर्ण सूचि के प्राप्त करने से पहले दर्शन नही देता । मूर्खो ने सफलता के मूल्य को बस परिश्रम तक ही सीमित कर के अपने विचारो को विराम दे दिया, यही विचार सत्य होते तो हर मजदूर सफल होता और हर विवेकशील असफल ।

सफलता ने अपने हर आयाम में अपने मूल्यों को भी नए नए रूप दे दिए है और उन्हें सिर्फ़ परिश्रम तक ही सिमित नही रखा है, कलयुग में सफलता के मूल्यों में सतयुगी गुणों को विशेष स्थान है, पात्र कितना परिश्रम करता है इससे जयेदा यह महत्वपूर्ण है की उस परिश्रम के साथ उसने कितनी ईमानदारी से अपना साथ दिया है, कितने पवित्र मन से इंसानियत को अपनाया है, कितना झुकना सिखा है जिससे वोह सफलता मिलने पर लचीला बना रहे और समाज उसके सफल होने से सुन्दरता और सन्ति का अनुभव करे न की एक और शिला का आभास संसार को हो।

No comments: