Thursday, October 23, 2014

असफल... सफलता, तलाश जारी है

नन्ही नन्ही उंगलियों में आज उसने बड़े बड़े नोट पहली बार थामे है, मन बड़ा ही उत्साहित है नई नई जगह और आज से घंटे गद्धी पर बैठना है, साथ में असमंजस में है की इतने बड़े बड़े हिसाब कैसे करे...पर जो बचपन से ही भास्कर को घूरता बड़ा हुआ है उसे यह चुनोती कहा हताश करती ..एक एक कर के नोट गिने ...फ़िर हिसाब लगाया ..फ़िर लगाया ..अरे एक बार और लगाया ..और बचे रूपये बापस दे दिए...अरे यह क्या अभी भी हिसाब लगा रहा है ... चलो अब संतुष्ट..और चहरे पर पूर्ण विजयी मुश्कान गई ..अरे हो क्यों आज पहली बार सफलता का स्वाद चखा है, सामाजिक सफलता? ...हा सामाजिक सफलता पहली बार कोई ऐसा काम किया है जिसे समाज कमाना कहता है ..तो यह सफलता से कम नही है, इसका आनंद चंद्र पर प्रथम चरण रखने से कम तो होगाअब यह रोज की बात हो गई है ..वही हिसाब ..वही नोट ..और वही जगह ..काम वही है पर अब वैसा उत्साह और आनंद नही जैसा पहली बार आया था ..वोह सफलता प्राप्त करने की चमक भी नही
शायद सफलता को ग़लत परिभासा दे दी थी ..वोह सफलता नही थी..चलो तलाश जारी है।जब मिले तो साक्षात्कर अवस्य करा देना।  

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