Thursday, October 23, 2014

उन में भी क्या दम थे..... जब मैं कम, सब हम थे।

उन में भी क्या दम थे, जब जेब में पैसे कम और दिन आनंद वन थे। 
साल की एक पोशाक , उसके हिस्से भी कभी कम थे। 
भरा है बक्सा, तब बल्ब कुछ मुठ्ठी में बंद थे। 
जोड़ तोड़ के बनती झालर, आँखे बड़ी और पुलकित तन थे। 
हल्ला गुल्ला मौज और मस्ती, की थी बड़ी कीमत सस्ती। 
उन में भी क्या दम थे, जब जेब में पैसे कम और दिन आनंद वन थे।

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दरवाजे पर थे बैठा करते, घंटे घंटे फ़ोन थे करते। 
दीदी कितनी देर लगेगी, कौन सी बस से तू निकलेगी।
देर से बैठे आस लगाये, तेरे घेवर के हम ललचाये। 
आते थे संग सब छोटे मोटे... भोले भाले थोड़े खोटे। 
उन में भी क्या दम थे, जब जेब में पैसे कम और दिन आनंद वन थे। 

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उन में भी क्या दम थे..... जब मैं कम, सब हम थे।



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