Sunday, August 31, 2008

कल सा मित्र कहाँ ....

यु तो इन गुजरे सालो में कितने कल आये और कितने नही आये, पर हर कल दुसरे कल से अलग नही रहा क्युकी सब कल एक ही कहानी अलग अलग पात्रो पर लिख कर चले गए . कहानी है हर आज को आने वाले कल की चादर उडाने की । याद है वो बड़ी सी किताब पर टिकी खोयी खोयी आँखे, पेंसिल से कागज पर कुछ ताना बना बुनती नन्ही नन्ही उंगलिया और एक पन्ना भरने के बाद ..सोचना अरे कल तो रविवार है अब बाकि कल करेंगे और सोच कर खुश हो जाना, बड़ा ही मधुर परन्तु धोके से भरा अस्वाशन । रविवार तो बहुत आये, पर वो कल आज भी अपने को किसी रविवार में ढूंड रहा है ।

युही हर आज कल की नरम चादर में लिपट कर सोता चला गया, कभी कभी तो सैतान कल ने घंटो का रूप ले लिया, कितनी ही बार परीक्षा से पहले बहुत सवाल इस कपटी आस्वासन से की १-२ घंटे आराम कर के या गाने सुन के या घूम के करेंगे, घंटो की राह में छोड़ दिए फ़िर वो घंटे भी कभी नही आये। जो भी हो वो कल और वो घंटे आये या नही पर थे बड़े ही मधुर जो सारे भार को क्षण भर में ही छु कर देते थे। आज भी उन परम मित्रो ने साथ नही छोडा है, अब भी जब आवश्यकता होती है झट से आ जाते है सारी मुश्किल आसान कराने।

अरे अरे अरे अभी इतनी जल्दी कल की छवि को शैतानो जैसी मत निश्चित करो अभी कल बहुत से और भी रूप है।
हर रोज एक नई चुनोती और मन का उसे देख कुछ क्षण गबरा जाना...बस कुछ क्षण ही ..लेकिन क्यों... कल है न हिम्मत बनने को ..अरे नही रे ..आने वाला सैतान कल नही, यह तो गुजरा कल है जिस कल की सुंदर छवि हर गुजरे संगर्ष और सफलता के क्षण में छुपी है, जो हर आने वाले चुनोती भरे क्षण के सामने गुजरे संगर्ष और सफलता के क्षणों को लाकर हिम्मत और चुनोती को ललकारने की क्षमता को दोगुना कर देता है।

आने वाले कल की चादर बड़ी ही विशाल और चुम्बकीय है..जो भी डालो सब छुप जाता है और फ़िर बापस भी आने की सम्भावना कहा है । आनंद यह है की इसमें लाभ और हानि दोनों का भंडार है, हानि के लिए इसमे संघर्ष और लाभ ले लिए हताशा, आलस और लालच को डालो , जितना इसे उपयोग करो उतिनी ही इसकी महिमा और बढ जाती है ।
वही गुजरा कल बहुत शांत, शीतल और गहरा है जो किसी भी परेशानी की ज्वाला में गुजरे सफलताओ के क्षणों को लाकर ढंडक कर देता है ।

सत्य है कल सा मित्र कहाँ ।

3 comments:

शोभा said...

बहुत बढ़िया। स्वागत है आपका।

प्रदीप मानोरिया said...

ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है
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राजेंद्र माहेश्वरी said...

लेकिन..........

आज, दो कल के बराबर है।