Wednesday, September 3, 2008

कब तक?

भीख मांगते एक बच्चे को सड़क के किनारे पर देखा, जो अपने भविष्य के खोने के डर से लड़ रहा है।
उसको देख कर एक भाषण याद आया जो कुछ यु है.....

आज मेरे बोलने का कोई छुपा उद्देश्य नही है, आज में यहाँ अपने भविष्य के लिए युद्ध करने आया हूँ
मेरे भविष्य का खोना किसी राजनितिक चुनाव का हारना नही है ..और.. ही स्टॉक बाजार का कुछ अंक खोना है

में
आज यहाँ हूँ ..आने वाले समाज के लिए ..हर मनुष्य के लिए जो भूखमरी से लड़ रहा है
में यहाँ हूँ ..उन अनगिनत जानवरों के लिए जो रोज मर रहे है, जिनके पास अब कोई जगह नही है शान्ति से रहने के लिए

हर
बार घर से बहार निकलने से पहले ओजोन परत के छेद मुझे आज डराते है ..मुझे भय है साँस लेने में ..पता नही कौन कौन से रसायन में अपनी साँस के साथ अंदर ले रहा हूँ

बचपन
में मैं अपने पिता के साथ मछली पकड़ने पास के तालाब पर जाता था ..पर आज मुझे वहां कोई मछली नही मिलती
....कुछ
दिन पहले बस एक मिली जो बहुत विशेष थी मेरे लिए ..... उसे कैंसर था

आज में जानवर और पेड़ को मरते कटते देखता हूँ। मैंने अपने जीवन में जंगल, जानवरों, पक्षी, जल सम्पदा और वायुमंडल को अपार क्षति होते हुए देखी हैमें आश्चर्यचकित हु यदि यह सब मेरे बाद आने वाले मनुष्यों के समाज को देखने को मिलेगा
क्या
आप सब इन सब के बारे में चिंतित थे जब मेरी उम्र के थेमें बस एक बेबस बालक हूँ और जनता हूँ, मेरे पास कोई समाधान नही है इन सबका, पर में चाहता हूँ आप सब इसे आज समक्षे
आप नही जानते की ओजोन परत के छेदों को कैसे सही करे, आप नही जानते की कैसे सूखी नदियों में पानी लाये, आप नही जानते की विलुप्त हो चुके जीवो को कैसे बापस लाये, आप काट चुके जंगलो को भी बापस नही ला सकतेजब आप नही जानते की इसे कैसे सही करना है ..तो...कृपया इसे तोड़ना बंद करे

आप सब बड़ी बड़ी कंपनियों के भावी कर्यभारक है, किसी विश्व विख्यात विद्यालय के छात्र या अद्यापक है, वैज्ञानिक, इंजिनियर या समाज सुधारक है ...पर इन सबसे पहले आप एक अविभाबक है, आप पिता और माता है..भाई और बहिन है ..और आप सब किसी के बच्चे भी है

में बस एक बालक हु और जनता हु की हम एक बहुत बड़ा परिवार है ..३० करोड़ अलग अलग जीवो से भरा, और हम सबको एक साथ मिलकर अपने संसार को एक सुंदर रूप देने के लक्ष्य की और चलना है

हम रोज जाने कितना कचरा फेंकते है ..हम लाते है और फेंकते है ..लाते है और फेंकते है...और जिन्हें आवस्यकता है उनके साथ कभी नही बांटते जबकि हमारे पास हमारी आवश्यकता से अधिक है तब भी

कल
में एक सड़क के किनारे मांगते बालक से मिला और उसने मुझसे कहा की मेरी इच्छा है की में अमीर बनू और हर किसी को खाने को दू....जब एक मांग कर खाने वाला यह विचार रख रखता है तो हम क्यों नही।

मेरे सारे जीवन ..आप मुझे सत्य और अच्छाई सिखाते रहे, यहाँ तक की आप मुझे शिशु अवस्था से ही सीखा रहे है की दुसरो से कैसे बोलना है, कैसे सब से प्यार करना है, कैसे वातावरण को संभालना है, ... आश्चर्य ..फ़िर आप क्यों वह करते है ..जो आप मुझे करने की सलाह देते रहे
मत भूलिए की आप क्यों काम कर रहे है ..आप क्यों धन अर्जित कर रहे है ...हम आपके ही बच्चे है ..यदि जिस वातावरण में हमे रहना है वही नही रहेगा तो ..आपके धन और संसाधनों का क्या उपयोग होगा और कौन उन्हें उपयोग करेगा
क्या आप आज हमसे कह सकते है की सब सही हो जाएगा...सब पहले जैसा ही सुंदर होगा ....मुझे नही लगता की आपमें साहस है

मेरे पिता हमेशा कहते रहे की तुम वह हो जो तुम कर रहे हो .. की वह जो तुम कह रहे हो, आप जो कर रहे है वह मुझे रातो में रुलाने के लिए काफी है ...आप बार बार कहते है की आप मुझसे प्यार करते है ..पर मुझे आपके कर्म में कही भी ऐसा नही लगता ...क्या मेरा भविष्य आपके लिए किसी प्राथमिकता की श्रेणी में आता है...आपके कर्म से मुझे ऐसा नही लगता...
....................अब जरा सोचिये...बस सोचिये।

अब हमे मानना होगा, और चीख चीख कर कहना होगा की.....

नही नही मैं सर्वश्रेस्त्र नही हूँ, और यदि मैं सर्वश्रेस्त्र हूँ तो सर्वश्रेस्त्र की यह परिभाषा नई है।
मेरी परिभाषा तो बांटने और मिलने की थी, यह कब से खाने और छिनने की बन गई।
मेरी परिभाषा तो शुरू ही हम से होती थी, यह बस मैं में ही क्यों सिमट गई।
मैं पिछड़ गया या परिभाषा ही फिसल गई कही, में रह गया या परिभाषा ही चली गई कही अंध तमस के गलियरों में।

पर कुछ तो है जो अब भी बचा हुआ है, जो खीज रहा है मन को मेरे ही तरानो में।
खुशबु तो है ...महक कहाँ, हसी है ..खनक कहाँ, शब्द है ..स्वर कहाँ,
कल दूर से मुस्करा देता था जो आज लिपट के मिल लेता है, बदन है... मिलन कहाँ।
भीड़ में अकेला यु चल रहा है मुशाफिर, दौड़ है पर मंजिले कहाँ।