Saturday, May 15, 2021

अब पुकार रही

तारा एक गिरा आसमां से, न टूटा, न हारा।

न टूटा, न हारा।

खिलौनों पर मेरे, बस खर्च हो गया सारा।

--- 

तू ठीक तो है न बस यु पुचकार रही, वो माई मेरी कराह रही।

वो माई अब है मौन पड़ी, नैनो से है निहार रही, अब पुकार रही।
अब पुकार रही।
 
पिंजरे का पंक्षी, उधेड़ रहा पँख स्वर्ण सींको से।

जो लहू की धार बस नस में थी, आँख से आज वो पार हुयी।
स्वप्न मेरे जो मन में थे, कंठ को आके रूंध गए।
सीने में जो टीस उठी, उसका दर्द भी अब तेज हुआ।

तेरी मिट्टी में मिल जावा, बस इतनी सी थी आरजू।
तेरी मिट्टी में मिल जावा, बस इतनी सी थी आरजू। 
वो माई अब है मौन पड़ी, नैनो से है निहार रही, अब पुकार रही।


---
नाव फंसी है भंवर में, जरा सब्र करो, बहस अब किनारे पार करेँगे।
राजनीति कब सगी हुई तेरी और मेरी, कब  तक रिश्तों को यु तार तार करेंगे।

आ आज बस फैले कांच बटोर ले,
किसने मारा यह पत्थर, यह बात किसी और रात करेंगे।

अधिकार नजर में रहते है सदा, कब कर्तव्यों से साक्षात्कार करेंगे। 

--


No comments: